Friday, 7 June 2013
ताकि हमारे बगीचे सी चहकने लगे यह दुनिया
Sunday, 28 October 2012
Media in dock
A media which is subservient to the establishment and the market can not remain honest and neutral. It is bound to become dishonest and partisan. How can you expect it to work without profit? And profit could include whole range of benefits from advertisement to contracts. Many things which were earlier more collateral benefits for media houses have now become part of their commercial operation. We need to evolve a new model of media operation if we want media to play its required role in our democracy.
Monday, 1 October 2012
'करप्शन से लड़ाई में मीडिया को समाज ही दे सकता है संजीवनी'
यह निचोड़ है गत २४ सितम्बर को दिल्ली के गाँधी पीस फाउंडेशन में 'करप्शन और मीडिया' विषय पर करीब ढाई घंटे चली उस चर्चा का जिसका आयोजन कंसर्न्ड जर्नलिस्ट्स इनीशिएटिव (सीजेआई) और चंपा द अमिया एंड बी जी राव फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से किया था. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार श्री कुलदीप नैय्यर ने की.
बीमारी गहरी है
चर्चा की शुरुआत सीजेआई के संयोजक श्री अनिल सिन्हा ने की. उन्होंने कहा क़ि मीडिया संस्थानों के मालिकान अब जिस तरह से येन-केन-प्रकारेण कांट्रेक्ट हासिल करने या मीडिया के प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए अपने बिजनेस हितों को आगे बढाने में लगे हुए हैं उसे देखते हुए यह समझना मुश्किल नहीं क़ि बीमारी काफी गहरे उतर चुकी है.मीडिया का करप्ट हिस्सा मौजूदा भ्रष्ट राजनीति का सहभागी बन कर अपना प्रभाव बढाता जा रहा है और बीमारी को और गंभीर बनता जा रहा है.
उन्होंने कहा क़ि इस स्थिति को चुनौती मीडिया के अन्दर से ही मिल सकती है. पत्रकारों की असुरक्षा को कम करने और उन्हें ताकत देने की जरूरत है.
ताकत देगा कौन
वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा क़ि तमाम विपरीतताओं के बावजूद आज भी ऐसे पत्रकारों की कमी नहीं है जो मूल्यों के लिए खड़े होने को अपना गौरव मानते हैं, जिन्हें यह सुन कर अफ़सोस नहीं होता की उन्हें पैसा बनाना नहीं आता. मगर ऐसे पत्रकार लगातार हाशिये पर पहुंचाए जा रहे हैं. मूल सवाल यह है की पत्रकारों को ताकत कहाँ से मिलेगी. ये अपनी और पेशे की गरिमा की लड़ाई लड़ने को खड़े होने पर खुद को अकेले पाते हैं. न तो उन्हें अपने मीडिया संस्थान से कोई मदद मिलती है न दूसरे मीडिया संस्थानों से.श्री त्रिपाठी ने कहा क़ि अब सोशल मीडिया उम्मीद की किरण बन कर आये हैं. इनका समुचित इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
एकाधिकार की प्रवृत्ति पर अंकुश लगे
ऑल इण्डिया इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन के असोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. आनंद प्रधान ने कहा क़ि मीडिया में एकाधिकार के बढती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जरूरत है. उन्होंने कहा की क्रॉस मीडिया ओनरशिप को भी नियमित किया जाना चाहिए.
डॉ. प्रधान ने कहा क़ि मीडिया से जुड़े मसलों पर लॉबींग की जरूरत है और सीजेआई जैसे संगठनो को सांसदों के साथ भी संपर्क में रहना चाहिए ताकि इन मसलो पर उनका समर्थन जुटा कर सरकार को जरूरी क़दमों के लिए प्रेरित किया जा सके.
शोषण सबसे बड़ा भ्रष्टाचार
जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता शिवमंगल सिद्धांतकार ने कहा क़ि जब बात भ्रष्टाचार की हो तो यह रेखांकित करना जरूरी हो जाता है क़ि श्रम का शोषण सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है. उन्होंने कहा क़ि अन्य क्षेत्रों की तरह मीडिया में भी यह शोषण जबरदस्त ढंग से व्याप्त है. उन्होंने कहा क़ि करप्शन के सन्दर्भ में मीडिया की भूमिका सकारात्मक रूप तभी ले सकती है जब यह सत्ता शिखरों की ओर केन्द्रित न होकर मेहनतकश आबादी की ओर रुख करे.
खुद को मजबूत करें
अपने अध्यक्षीय संबोधन में कुलदीप नैय्यर ने कहा क़ि समाधान कहीं बाहर नहीं बल्कि अपने पास ही है. उन्होंने कहा क़ि मौजूदा हालात से चिंतित संवेदनशील पत्रकारों (कंसर्न्ड जर्नलिस्ट्स) को एक मंच पर आना चाहिए, इस इनीशिएटिव से जुड़ना चाहिए, अपनी सदस्यता बढानी चाहिए. अगर आप इतना भी कर लें तो आपकी ताकत इतनी बड़ी हो जायेगी क़ि आपके सुझावों को हलके में लेना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल हो जाएगा.
उन्होंने कहा क़ि मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए मीडिया को इन्टरनल रिस्ट्रक्चरिंग से गुजरना होगा. उन्होंने सरकार से एक प्रेस आयोग गठित करने की मांग करते हुए कहा क़ि करप्शन से मुकाबला करने के लिए मीडिया में भी पारदर्शिता लानी होगी और प्रेस आयोग का गठन इस दिशा में एक जरूरी कदम है.
तीन सुझाव
वरिष्ठ गांधीवादी कार्यकर्ता श्री राम शरण ने अपने संक्षिप्त संबोधन में तीन सुझाव रखे. १, मीडिया में कांट्रेक्ट सिस्टम ख़त्म करने के लिए और वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट पर अमल सुनिश्चित कराने के लिए एक जनहित याचिका दायर की जाए. २, एक स्वतंत्र आयोई बने जो मीडिया को विज्ञापन बांटने का काम देखे. ३, मीडिया कंपनियों में किसी भी एक कंपनी के शेयरों की अधिकतम सीमा एक फ़ीसदी निर्धारित कर दी जाए.
अंत में सीजेआई के संगठन सचिव प्रणव प्रियदर्शी ने आभार ज्ञापन किया.
Tuesday, 25 September 2012
Fight against attempts to curb freedom of the press: Nayar
Well known social activist Shiv Mangal Siddhantkar said that corruption can't be seperated from exploitation. The exploitaion is the most serious form of corruption.
Wednesday, 19 September 2012
सीजेआई का चर्चा सत्र 'करप्शन और मीडिया'
Friday, 16 December 2011
सिविल सोसाइटी के घेरे को तोड़े तो बहुत कुछ कर सकता है अन्ना का यह आंदोलन
टीम अन्ना ने देश में बदलाव का माहौल तो बना दिया है, लेकिन यह बदलाव क्या होगा, कैसा होगा और कितना होगा - जैसे सवाल अभी कायम हैं और इनके जवाब इस बात पर निर्भर करते हैं कि टीम अन्ना सिविल सोसाइटी के मौजूदा घेरे को तोडक़र आम जनता के साथ एकाकार होने में कितना कामयाब होती है। यह बात गुरुवार को नई दिल्ली के गांधी पीस फाउंडेशन सभागार में चर्चा सत्र के दौरान दिए गए वक्तव्यों से उभरी। चर्चा सत्र का आयोजन कन्संर्ड जर्नलिस्ट इनिशिएटिव (सीजेआई) ने किया था।
प्रमुख वक्ता थे प्रसिद्ध पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता कुलदीप नैयर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रफेसर सुबोध मालाकार, ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल के राष्टीय संयोजक ओमप्रकाश, मशहूर रंगकर्मी और टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविंद गौड़ तथा वरिष्ठ पत्रकार जितेंद कुमार।
अनिल सिन्हा
सबसे पहले सीजेआई के संयोजक अनिल सिन्हा ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा, अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को दाद देनी चाहिए कि उसने देश के मध्यम वर्ग और खाते पीते लोगों को सड़कों पर आने को मजबूर किया। यह वह वर्ग है जिसे भ्रष्टाचार से कोई दिक्कत नहीं है। मगर, अहम सवाल आज यह है कि अन्ना का आंदोलन बड़े बदलावों का वाहक बनेगा या नहीं। उन्होंने कहा, खुद को एक खास कानून की मांग तक सीमित रखते हुए यह आंदोलन बड़े बदलावों की ओर नहीं जा सकता। सिर्फ भष्टाचार नहीं बल्कि नई जीवनशैली, बेरोजगारी, गरीबी, नौकरियों में असुरक्षा बोध - ये बड़े कारण हैं जो देश में बदलाव की जरूरत को रेखांकित करते हैं। उन्होंने कहा कि अन्ना के आंदोलन को इतना समर्थन मिलने की एक बड़ी वजह है उसका अहिंसात्मक रूप। लेकिन, अन्ना खुद को गांधीवादी कहते हुए शिवाजी से पेरित बताना भी नहीं भूलते। इन दोनों महापुरुषों का व्यक्तित्व का एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है और एक साथ दोनों का नाम लेने से आंदोलन में भम की गुंजाइश बनती है।
जितेंद्र कुमार
वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र कुमार ने कहा कि भ्रष्टाचार की बात होती है तो सिर्फ हम आर्थिक भ्रष्टाचार की बात करते हैं, लेकिन समाज में दूसरे तरह के करप्शन भी हैं। आप सरकारी शिक्षा और प्राइवेट शिक्षा में अंतर को देख सकते हैं। आप देख सकते हैं कि कैसे सरकारी शिक्षा संस्थानों को नष्ट किया जा रहा है। स्वास्थ्य संस्थाओं को जानबूझकर चौपट किया जा रहा है ताकि लोगों को इसके लिए प्राइवेट हॉस्पिटलों में जाना पड़े। आखिर पूरे देश में एक समान शिक्षा की बात क्यों नहीं हो रही है। एक समान स्वास्थ्य सेवाओं की बात क्यों नहीं की जा रही है।
सुबोध मालाकार
जेएनयू के प्रफेसर सुबोध मालाकार ने ने कहा कि भ्रष्टाचार की कोई नीति नहीं होती बल्कि नीतियों में भ्रष्टाचार होता है। उनका कहना था कि नीतियों पर विश्लेषण के बाद ही भ्रष्टाचार को मिटाया जा सकता है। उन्होंने अन्ना के आंदोलन के बारे में कहा कि यह लंबे संघर्ष की कहानी नहीं है। हालांकि उन्होंने कहा कि अन्ना ने भ्रष्टाचार को मुद्दा जरूर बनाया है पर कारणों पर विचार करने की जरूरत है।
भ्रष्टाचार के कारणों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि 60 के दशक तक तो देश का सिस्टम ठीक चला लेकिन 70 का दशक आते-आते देश में भ्रष्टाचार जड़ पकड़ने लगा। उन्होंने कहा कि नव उदारवाद और सामाजिक संरचना, इन दो चीजों ने देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है।
उन्होंने कहा कि नव उदारवाद के तहत फ्री मार्केट और डीकंट्रोलाइजेशन ऑफ गवर्नमेंट की नीतियों पर जोर रहता है। उन्होंने बताया कि कैसे वर्ल्ड बैंक का 18 फीसदी धन दुनिया भर के सांसदों पर खर्च किया जाता है ताकि वे साम्राज्यवादी ताकतों के फेवर में नीतियां बना सके। उनका कहना था कि पूंजीवाद और भ्रष्टाचार में गठजोड़ है और इसको तोड़े बगैर भ्रष्टाचार को मिटाया नहीं जा सकता।
ओमप्रकाश
ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल के ओम प्रकाश ने कहा अन्ना के आंदोलन को इस बात का श्रेय देना पडग़ा कि इसने हमारे लोकतंत्र से जुड़े कुछ मूल सवालों को स्पष्ट रूप से देश के सामने रख दिया
- जनता सर्वोच्च है या जनता द्वारा तैयार की गई संस्थाएं?
- व्यवस्था के संचालन में जनता को हस्तेक्षेप करने का अधिकार है या नहीं?
- संसद में होने वाली बहस का एजेंडा सडक़ पर तय हो सकता है या नहीं?
ये सारे सवाल लोकतंत्र को आगे बढ़ाने वाले और जनता की राजनीतिक निष्कियता दूर करने वाले सवाल हैं। मगर, यह आंदोलन आखिरकार लोकतंत्र को मजबूत बनाएगा या नहीं यह अभी से नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि जनता द्वारा चुनी गई संसद जिस तरह से लगातार जनविरोधी नीतियां देश पर थोपती रही है, उससे अब जनता के बीच उसकी कोई साख नहीं रह गई है। मगर, इससे जो राजनीतिक शून्य पैदा हुआ है, उसे अन्ना के आंदोलन का नेतृत्व सिविल सोसाइटी से भरना चाहता है।
ओम प्रकाश ने कहा, यह सिविल सोसाइटी निर्वाचित संस्था नहीं है। इसे कथित आर्थिक सुधारों की जनविरोधी नीतियों से भी कोई दिक्कत नहीं है। यह अकारण नहीं है कि प्रशांत भूषण को छोड़ दें तो इस आंदोलन का कोई भी जिम्मेदार नेता आर्थिक सुधारों की नीति के खिलाफ कुछ नहीं बोलता। उन्होंने कहा कि मौजूदा राजनीतिक शून्य को सिविल सोसाइटी के बजाय जनवादी ताकतों से भरना होगा। तभी बात बनेगी।
अरविंद गौड़
टीम अन्ना के सदस्य और मशहूर रंगकर्मी अरविंद गौड़ ने कहा कि हम पर संसद की तौहीन करने का आरोप लगाया जाता है, लेकिन खुद स्थायी समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी संसद के वादे को झुठला देते हैं तो क्या वह संसद की तौहीन नहीं है? उन्होंने कहा कि कानून तो बनते हैं लेकिन लोगों में उन कानूनों के बारे में जानकारी नहीं होती। उन्होंने कहा कि टीम अन्ना का आंदोलन सिर्फ एक कानून के लिए नहीं है बल्कि जनता को जागरूक बनाने के लिए भी है। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन ने आम आदमी को संसद के समानांतर ला खड़ा किया है।
कुलदीप नैयर
प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर देश में हर 30-35 साल पर परिवर्तन की लहर उठती है। पहले गांधी जी का आंदोलन हुआ। उसके 30 साल बाद देश आजाद हुआ। इसके 30 साल बाद जेपी का आंदोलन हुआ और अब अन्ना का आंदोलन। लेकिन इन आंदोलन के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ा। इसका कारण है कि व्यवस्था में परिवर्तन तो हो जाएगा, पर लोगों में परिवर्तन नहीं हो पाता है। जरूरत है कि लोगों के अंदर परिवर्तन करने की और उन्हें ईमानदार बनाने की। लोगों को उसूलों के प्रति जागरूक बनाने की। उन्होंने कहा कि मुनष्य के अंदर परिवर्तन जरूरी है।
उन्होंने कहा कि लोकपाल बन भी जाए तो उसके साथ हजारो कर्मचारी जोडऩे पड़ेंगे। वे सब तो इसी समाज से जाएंगे। उनके ठीक रहने की गारंटी कैसे ली जा सकेगी? उन्होंने यह भी कहा कि जब जन लोकपाल बिल पर चर्चा हो रही थी तब एक बैठक में मैं भी था। मैंने कहा कि इसमें पाइवेट कंपनियों को क्यों नहीं रखा गया है? लेकिन पाइवेट कंपनियां आज भी इसमें नहीं हैं। जबकि पाइवेट कंपनियों के भष्टाचार पर कश लगाना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि आम को अधिक से अधिक शिक्षित करना, उसे जागरूक बनाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है उसे ताकत देना। संस्थाओं को या तंत्र को ताकत देने से बात नहीं बनेगी। हमें आम आदमी के हाथों में ताकत देने का कोई रास्ता खोजना होगा।
श्रोता
कार्यकम के आखिर में कुछ श्रोताओं ने जोरदार तरीके से अपनी बात रखकर कार्यकम को और विचारोत्तेजक बना दिया। बदरे आलम ने कहा कि मैं गांव का एक सामान्य किसान मुस्लिम के तौर पर भी अन्ना के आंदोलन को पूर्ण समर्थन देने को तैयार हूं। लेकिन, मेरे लिए अन्ना के आंदोलन में क्या है? न तो आप खेती को सस्ता करते करते हैं और न उपज का पर्याप्त मूल्य दिलाते हैं। अन्ना इस पर एक शब्द नहीं बोल रहे।
एक अन्य श्रोता भुवेंद्र रावत ने लोकपाल कानून बनने के बाद के हालात पर रोशनी डालते हुए कहा, दूर दराज के गांवों से रोजगार की तलाश में लोग दिल्ली आते हैं। उन्हें रहने को कहीं घर नहीं मिलता। दिल्ली में वैध घर हासिल करना सबके बूते की बात नहीं होती। आजकल ऐसे लोग एमसीडी कर्मचारियों को कुछ सौ या हजार रुपए देकर अवैध झोपड़ों में रहने का जुगाड़ कर लेते हैं। लेकिन, लोकपाल कानून बनने के बाद ऐसे एमसीडी कर्मचारियों को जेल हो जाएगी। नतीजतन जेल जाने के डर से ये कर्मचारी उन झोपड़ों को तोड़ देंगे। दिल्ली तो शायद साफ-सुथरी रहेगी, लेकिन उन बेघरों की जिंदगी कैसी होगी जरा इसकी कल्पना कीजिए।
उन्होंने कहा, गांवों के ऐसे सामान्य लोग जो दिल्ली आते हैं तो उनके पास न तो पूंजी होती है और न ही वे ज्यादा पढ़े-लिखे होते हैं। जब उन्हें कोई काम नहीं मिलता तो कहीं सडक़ के किनारे रेहड़ी लगाना शुरू कर देते हैं। पुलिस, एमसीडी वगैरह के लोगों को हफ्ता देकर भी उनका गुजारा चलने लायक आमदनी हो जाती है। लेकिन, लोकपाल कानून बनने के बाद मॉल वाला इनकी शिकायत करेगा और जेल जाने के डर से एमसीडी वाले इसकी रेहड़ी उजाड़ देंगे। यह कहां जाएगा इसकी चिंता वे लोग नहीं कर रहे जो लोकपाल बिल लाने की लड़ाई में एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं।
Monday, 12 December 2011
सीजेआई का चर्चा सत्र, ज़रूर शामिल हों
साथियो, हमें आप सबको यह बताते बेहद खुशी हो रही है कि कंसर्न्ड जर्नलिस्ट्स इनीशिएटिव (सीजेआई) का पहला कार्यक्रम 15 दिसंबर 2011 को नई दिल्ली के गाँधी पीस फाऊंडेसन सभागार मे होने जा रहा है. यह एक चर्चा सत्र है जिसका विषय है, 'भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन: मौजूदा परिदृश्य.'
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार श्री कुलदीप नैय्यर करेंगे. सम्मानित वक्ता हैं, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर सुबोध मालाकार, ऑल इंडिया वर्कर्स काउन्सिल के श्री ओमप्रकाश, मशहूर रंगकर्मी और टीम अन्ना के अहम सदस्य श्री अरविंद गौड़ तथा वरिष्ठ पत्रकार श्री जितेंद्र कुमार. कार्यक्रम का संचालन करेंगे सीजेआई के संयोजक श्री अनिल सिन्हा.
इस कार्यक्रम में आप सब सादर आमंत्रित हैं. सभी साथी कृपया अधिक से अधिक संख्या मे शामिल होकर इस कार्यक्रम को सफल बनाएँ.
स्थान: गाँधी पीस फाउंडेशन, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, निकट आईटीओ
तारीख: 15 दिसंबर (गुरुवार), 2011
समय: शाम साढ़े पाँच बजे