Monday 1 October 2012

'करप्शन से लड़ाई में मीडिया को समाज ही दे सकता है संजीवनी'


एक समय था जब मीडिया पर करप्शन के सन्दर्भ में गड़बड़ियों के आरोप उसके कुछेक रूपों का तर्कों-वितर्कों-कुतर्कों से बचाव करने तक सीमित रहा करते थे, मगर अब आरोप सीधे-सीधे करप्शन में भागीदारी के लगने लगे हैं. नीरा राडिया काण्ड और कोलगेट में मीडियाकर्मी और मीडिया संस्थान जिस तरह सीधे तौर पर आरोपों से घिरे उसके बाद कहने-सुनने की गुंजाइश कम ही रह जाती है. मगर अहम् सवाल यह है क़ि हालात बदले कैसे जाएँ. इस लिहाज से देखें तो मीडिया के अन्दर मीडियाकर्मियों को ताकतवर बनाना, उनकी असुरक्षा कम करना जरूरी लगता है. मीडियाकर्मियों को मजबूती समाज की जागरूक ताकतें ही दे सकती हैं, पर समाज की ताकतें भी आज बाजार की ताकतों के सामने पस्त पडी हैं. ऐसे में रास्ता यही हो सकता है क़ि मीडियाकर्मी और समाज एक दूसरे का हाथ थाम एक-दूसरे की ताकत बढाते चलें. करप्शन से लड़ाई में मीडिया को संजीवनी समाज से ही मिल सकती है.

यह  निचोड़ है गत २४ सितम्बर को दिल्ली के गाँधी पीस फाउंडेशन में 'करप्शन और मीडिया' विषय पर करीब ढाई घंटे चली उस चर्चा का जिसका आयोजन कंसर्न्ड जर्नलिस्ट्स इनीशिएटिव (सीजेआई) और चंपा द अमिया एंड बी जी राव फाउंडेशन ने संयुक्त रूप से किया था. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार श्री कुलदीप नैय्यर ने की.

बीमारी गहरी है
चर्चा की शुरुआत सीजेआई के संयोजक श्री अनिल सिन्हा ने की. उन्होंने कहा क़ि मीडिया संस्थानों के मालिकान अब जिस तरह से येन-केन-प्रकारेण कांट्रेक्ट हासिल करने या मीडिया के प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए अपने बिजनेस हितों को आगे बढाने में लगे हुए हैं उसे देखते हुए यह समझना मुश्किल नहीं क़ि बीमारी काफी गहरे उतर चुकी है.मीडिया का करप्ट हिस्सा मौजूदा भ्रष्ट राजनीति का सहभागी बन कर अपना प्रभाव बढाता जा रहा है और बीमारी को और गंभीर बनता जा रहा है.
उन्होंने कहा क़ि इस स्थिति को चुनौती मीडिया के अन्दर से ही मिल सकती है. पत्रकारों की असुरक्षा को कम करने और उन्हें ताकत देने की जरूरत है.

ताकत देगा कौन
वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा क़ि तमाम विपरीतताओं के बावजूद आज भी ऐसे पत्रकारों की कमी नहीं है जो मूल्यों के लिए खड़े होने को अपना गौरव मानते हैं, जिन्हें यह सुन कर अफ़सोस नहीं होता की उन्हें पैसा बनाना नहीं आता. मगर ऐसे पत्रकार लगातार हाशिये पर पहुंचाए जा रहे हैं. मूल सवाल यह है की पत्रकारों को ताकत कहाँ से मिलेगी. ये अपनी और पेशे की गरिमा की लड़ाई लड़ने को खड़े होने पर खुद को अकेले पाते हैं. न तो उन्हें अपने मीडिया संस्थान से कोई मदद मिलती है न दूसरे मीडिया संस्थानों से.श्री त्रिपाठी ने कहा क़ि अब सोशल मीडिया उम्मीद की किरण बन कर आये हैं. इनका समुचित इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

एकाधिकार की प्रवृत्ति पर अंकुश लगे
ऑल इण्डिया इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन के असोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. आनंद प्रधान ने कहा क़ि मीडिया में एकाधिकार के बढती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जरूरत है. उन्होंने कहा की क्रॉस मीडिया ओनरशिप को भी नियमित किया जाना चाहिए.
डॉ. प्रधान ने कहा क़ि मीडिया से जुड़े मसलों पर लॉबींग की जरूरत है और सीजेआई जैसे संगठनो को सांसदों के साथ भी संपर्क में रहना चाहिए ताकि इन मसलो पर उनका समर्थन जुटा कर सरकार को जरूरी क़दमों के लिए प्रेरित किया जा सके.

शोषण सबसे बड़ा भ्रष्टाचार
जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता शिवमंगल सिद्धांतकार ने कहा क़ि जब बात भ्रष्टाचार की हो तो यह रेखांकित करना जरूरी हो जाता है क़ि श्रम का शोषण सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है. उन्होंने कहा क़ि अन्य क्षेत्रों की तरह मीडिया में भी यह शोषण जबरदस्त ढंग से व्याप्त है. उन्होंने कहा क़ि करप्शन के सन्दर्भ में मीडिया की भूमिका सकारात्मक रूप तभी ले सकती है जब यह सत्ता शिखरों की ओर केन्द्रित न होकर मेहनतकश आबादी की ओर रुख करे.

खुद को मजबूत करें
अपने अध्यक्षीय संबोधन में कुलदीप नैय्यर ने कहा क़ि समाधान कहीं बाहर नहीं बल्कि अपने पास ही है. उन्होंने कहा क़ि मौजूदा हालात से चिंतित संवेदनशील पत्रकारों (कंसर्न्ड जर्नलिस्ट्स) को एक मंच पर आना चाहिए, इस इनीशिएटिव से जुड़ना चाहिए, अपनी सदस्यता बढानी चाहिए. अगर आप इतना भी कर लें तो आपकी ताकत इतनी बड़ी हो जायेगी क़ि आपके सुझावों को हलके में लेना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल हो जाएगा.
उन्होंने कहा क़ि मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए मीडिया को इन्टरनल रिस्ट्रक्चरिंग से गुजरना होगा. उन्होंने सरकार से एक प्रेस आयोग गठित करने की मांग करते हुए कहा क़ि करप्शन से मुकाबला करने के लिए मीडिया में भी पारदर्शिता लानी होगी और प्रेस आयोग का गठन इस दिशा में एक जरूरी कदम है.

तीन सुझाव
वरिष्ठ गांधीवादी कार्यकर्ता श्री राम शरण ने अपने संक्षिप्त संबोधन में तीन सुझाव रखे. १, मीडिया में कांट्रेक्ट सिस्टम ख़त्म करने के लिए और वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट पर अमल सुनिश्चित कराने के लिए एक जनहित याचिका दायर की जाए. २, एक स्वतंत्र आयोई बने जो मीडिया को विज्ञापन बांटने का काम देखे. ३, मीडिया कंपनियों में किसी भी एक कंपनी के शेयरों की अधिकतम सीमा एक फ़ीसदी निर्धारित कर दी जाए.

अंत में सीजेआई के संगठन सचिव प्रणव प्रियदर्शी ने आभार ज्ञापन किया.

1 comment:

  1. पहले तो अपना आभार व्‍यक्‍त करना चाहूंगी कि मुझे इतने जरूरी और महत्‍वपूर्ण विषय पर सुनने के लिए आमंत्रित किया गया...

    पहली बार मैंने महसूस किया कि पत्रकारिता का वर्तमान स्‍टाइल किस तरह खतरनाक और असंवेदनशील है. इस दौर में इन मुश्किलों का सामना करने के लिए ये जो एसोसिएशन बना है.. वह हमारा पहला औजार है... मेरा पूरा सर्मथन है... शुभकामनाएं

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